About the Book | |
Author of book | Dr. B.B. Ghongade |
Book's Language | Hindi |
Book's Editions | First |
Pages of book | 152 |
Publishing Year of book | 2018 |
- Availability: In Stock
- Model: BHB-353
- ISBN: 9789385804267
About the Book
नासिरा शर्मा एक सक्षम स्त्री लेखिका हैं। उनका कथा साहित्य समस्त विश्व की स्त्रियों का बहुआयामी चित्रण का दस्तावेज है। स्त्रियों के जीवन का वास्तविक और यथार्थ चित्र प्रस्तुत करने में नासिरा शर्मा को पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई है। परिवेश इनकी कहानियों का केंद्र-बिंदु है। वह अपने पूरे सामर्थ्य और संवेदना के साथ कहानियों में आविर्भूत हुई है। एक जीवंत पात्र की तरह उनकी उपस्थिति कहानियों में प्राणवान और अर्थवान बनाती है।
नासिरा शर्मा की कहानियों में लगभग बारह देशों की समस्त विशेषताएँ एक साथ उजागर हुई हैं। विभिन्न देशों की स्त्रियों का सूक्ष्म चित्रण उनकी संवेदनाओं के साथ चित्रित करना यह उनकी खूबी कही जा सकती है। नासिरा शर्मा की संपूर्ण संवेदना स्त्री जीवन से सराबोर है। वह चेतना इस जीवन में इतनी घुलमिल गई है कि वह उनका अविभाज्य अंग बनकर रह गई है। नासिरा शर्मा ने स्त्री-जीवन के देश-विदेश की तस्वीरों को खींचते-खींचते समाज की मानसिकता को भी आलोकित किया है, स्त्रियों की सूक्ष्म संवेदनाओं का अंकन, पृष्ठभूमि की सहजता सादगी को मूर्त करने में प्रायः व्यतिरेकी रूप में उपस्थित है।
‘नासिरा शर्मा का कथा साहित्य : संवेदना एवं शिल्प’ अनुसंधान हेतु अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से शोधसामग्री को पाँच अध्यायों में विभक्त किया है- प्रथम अध्याय में नासिरा शर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व, द्वितीय अध्याय में संवेदना का स्वरूप एवं शिल्प, तृतीय अध्याय में नासिरा शर्मा के कहानी संग्रह में व्यक्त संवेदनाएँ चतुर्थ अध्याय में नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में संवेदना के विविध आयाम और पंचम अध्याय में नासिरा शर्मा के कथा साहित्य का अभिव्यंजना कौशल है।
नासिरा शर्मा जी की कहानियों में ‘बंद दरवाजा की शबाना, ‘बावली’ कहानी की ‘सलमा’, ‘पुराना कानून’ की ‘रूबीना’, ‘जुलजुता’ की ‘डायना’, ‘खुदा की वापसी की सकीना’, ‘मिस्र की ममी’ की ‘योता’, ‘पतझर के फूल’ की अनाहिता, ‘गुंगा आसमान की मेहरअंगीज’, मुट्ठी भर धूप की ‘रेखा, ‘इमाम साहब’ की ‘जुलेखा’ ऐसी अनगिनत स्त्री पात्र लगभग बारह देशों की संवेदनाओं को भौगोलिक परिसिमा के दायरे को तोड़ती हुई उनको सामान्य समुदाय से जोड़ती हैं।
पाकिस्तान, बाँग्लादेश, युगाण्डा, अफगानिस्तान, सीरिया, ईरान, इंग्लैंड, जापान, इजरायल, फिलिस्तीन भारत ऐसे अनेक देश-विदेश की स्त्रियों का वर्णन किसी यात्रा संस्मरण की सीमा को तोड़कर उनकी संवेदनाओं को दिल और दिमाग के उन तंतुओं से एक तार में बाँधते हैं जो भारत देश का दस्तावेज बन गई है। यही कारण है कि किसी भी सभ्यता के लिए एक वैश्विक स्तर की कहानियाँ बनते हुए बहुत ऊपर उठ जाती हैं। समस्त विश्व में सांप्रदायिकता का विष सांझी संस्कृति के निर्माण को नष्ट करती है। यह बिखरा हुआ विश्व या देश जब एकता, समता के सूत्र में पिरोये जायेंगे, तब वह दिन इन्सानी नस्ल का दिन होगा। यही नासिरा शर्मा के कहानियों में संवेदना है, इन संवेदनाओं को पूरा करने हेतु अभी बहुत करना बाकी है, बहुत कुछ मिटाना बाकी है, बहुत कुछ बनना बाकी है, हमारे भारत देश को आज़ाद करने वाले, सभी देशभक्तों, समाज-सेवकों एवं हित चिंतकों की यही विचारधारा थी कि सब एक हों, समान हों परंतु समय की धूसरता से समाज में यह विचार कहीं बेअसर होने लगते हैं। नासिरा जी का यह एक प्रयास मुझे यह किताब लिखने की प्रेरणा प्रदान करता है कि सर्वधर्मसमभाव एवं वसुधैवकुटुंबकम् की भावना जो खासकर स्त्रियों के लिए सबसे जरूरी है, यहाँ मुझे दुष्यंतकुमार की वह गजल की पंक्तियाँ स्मरण आती हैं-
‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत
बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो मेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन
आग जलनी चाहिए।’ हम सबको मिलकर इस स्थिति को बदलने की ऐसी
भरकस कोशिश करनी चाहिए कि यह समस्या ही न रहे।
नासिरा शर्मा के शिल्प के संदर्भ में इस किताब के माध्यम से नासिरा जी ने प्रस्तुत कथाओं में जीवन के उन महीन पलों को सार्थक शब्दों में ढालकर एक साफ और दो टूक जवाब दिया है। किसी रहस्यमयी एवं अति संवेदनशील प्रसंगों एवं घटना को स्पष्ट करते हुए बिना किसी घुमावदार सीढ़ियों के चढ़ने या पहेलियों की तरह उलझे शब्दों में कहीं भी किसी घने जंगल की तरह नजर नहीं आती। अर्थात् बिलकुल साफ-सुथरी, सरल शब्दावली, संपन्न शैली में नासिरा जी की कहानियाँ अद्भुत अर्थबोध प्रस्तुत करती हैं।