About the Book | |
Author of book | Dr. Shailja Bhardwaj |
Book's Language | Hindi |
Book's Editions | First |
Type of binding | Hardcover |
Pages of book | 327 |
Publishing Year of book | 2013 |
- Availability: In Stock
- Model: BHB-100
- ISBN: 9788188571642
About the book
इस ग्रन्थ में सिनेमा एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित लेखों में निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य की वैचारिक संवेदनशीलता और जीवन जगत को वह जिस रूप में देखना चाहता है उसकी कल्पना ने कला को जन्म दिया जिसकी अभिव्यक्ति साहित्य, स्थापत्य, चित्र, शिल्प आदि में हुई। आगे चलकर विज्ञान की विभिन्न तकनीकों ने सिनेमा, टेलीविजन आदि इलेक्ट्रानिक माध्यमों के कला रूप को जन्म दिया। साहित्य विश्व की प्राचीनतम कला है तो सिनेमा नव्यतम। मनुष्य की वृत्तियों के उदात्तीकरण और संवेदनशीलता के विकास में साहित्य की जो भूमिका है वही नव प्रौद्योगिकी के युग में सिनेमा की भी है। यूँ कहें, आज यह अधिक प्रभावशाली कलारूप है। कला की दृष्टि से सिनेमा साहित्य से अनुप्राणित रहा है लेकिन नव प्रौद्योगिकी एवं बाज़ारीकरण ने इस कला को व्यवसायिकता के धुएँ से इस तरह घेर लिया है कि यह कला की श्रेष्ठता से गिरकर बाज़ारू होता जा रहा है।
डॉ. शैलजा भारद्वाज
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय
बड़ौदा