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Premchand ke Katha Sahitya me Samajik Sarokar

Premchand ke Katha Sahitya me Samajik Sarokar
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Premchand ke Katha Sahitya me Samajik Sarokar
About the Book
Author of bookDr. Dilip Mehra
Book's LanguageHindi
Book's EditionsFirst
Type of bindingHardcover
Pages of book304
Publishing Year of book2013
  • Availability: In Stock
  • Model: BHB-102
  • ISBN: 9788188571604
₹520.00
₹650.00

About the book

हिन्दी में सामाजिक यथार्थ की परंपरा का प्रस्थान बिन्दु प्रेमचन्द का कथा-साहित्य है। प्रेमचन्द अपनी यथार्थवादी दृष्टि तथा सामाजिक सरोकारों के कारण खास तौर पर पहचाने जाते हैं। उन्होंने कल्पनात्मक प्रवृत्ति की जगह ठोस यथार्थ को महत्व दिया, संघर्षशील पात्रों की सृष्टि की तथा गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करना साहित्य का मूल उद्देश्य माना। यह कथा-साहित्य को उच्चतम धरातल पर ले जाने और उसे नये आयामों तथा गहरे दायित्वबोध से जोड़ने का एक श्लाघ्य प्रयास है। पुस्तक चार खंडों में विभाजित है। जिसके पहले, दूसरे और तीसरे खंड में प्रेमचंद  के कथा-साहित्य में यथार्थ के जटिल रूपों तथा सामाजिक सरोकारों को रेखांकित करने का प्रयास है। पुस्तक के चौथे खण्ड में कथा सम्राट प्रेमचंद तथा गुजरात के कथाकार पन्नालाल पटेल के तुलनात्मक अध्ययन पर लेख हैं जो इस तथ्य के प्रमाण हैं कि सामाजिक यथार्थ की परम्परा और ग्राम्य जीवन की अंतर्धारा इन दोनों रचनाकारों की रचनाओं में रग-रग में विद्यमान हैं।


डॉ. दिलीप मेहरा

प्रवक्ता, हिन्दी विभाग

एन.एस. पटेल आर्ट्स कॉलेज

आनन्द, गुजरात


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